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द गर्ल इन रूम 105–३६

अध्याय 7

क्लिक! फ़्लैश ! क्लिका फ़्लैश ! कैमरे की क्लिक्स और फ़्लैशेस और मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए जोर- जोर से चिल्लाते जर्नलिस्ट्स की आवाज़ों ने मुझे चकरा दिया। दोपहर हो चुकी थी और ज़ारा की मौत की ख़बर सुनते ही दिल्ली के हर अखबार और टीवी चैनल का पत्रकार हौज़ खास पुलिस थाने में आकर जम गया था। थाने के दरवाज़े को ही कोई तीस पत्रकार घेरे हुए थे। वे जानना चाह रहे थे कि जो हुआ, वह कैसे हुआ। इंस्पेक्टर राणा ने किसी से भी बात करने से इनकार कर दिया। कोई भी कांस्टेबल इजाजत के बिना मीडिया से बात करने की जुर्रत नहीं कर सकता था। दोपहर के वक्त जब मैं कुछ खाने के लिए पुलिस थाने के बाहर गया तो रिपोर्टरों ने मुझे ही घेर लिया और सवालों की बौछार कर दी। 'क्या आप ही केशव राजपुरोहित हैं?' एक ने कहा।

मैंने धीमे से सिर हिलाया। रिपोर्टरों में अफरातफरी मच गई। उन्होंने एक-दूसरे से गुत्थमगुत्था होकर अपने-अपने माइक मेरे मुंह के सामने लगा दिए।

'डेड बॉडी आपको ही मिली थी?' दूसरे ने पूछा।

"क्या आप ही गर्ल्स हॉस्टल में गैर-कानूनी तरीके से घुसे थे?" तीसरा जानना चाहता था। 'क्या आप उसके एक्स-बॉयफ्रेंड हैं?" एक और सवाल गूंजा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं और किसके सवाल का जवाब दूं।

"प्लीज़, मुझे जाने दीजिए। मैंने कुछ नहीं किया है। मुझे कुछ नहीं पता है।' मुझे नहीं मालूम, मैंने वैसा क्यों कहा, क्योंकि यह सुनकर तो सवालों की आग और भड़क गई। 'क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि शक की सूई आप पर भी है?"

"नहीं, ऐसा नहीं है। मैंने ऐसा कब कहा?'

"क्या आपके और ज़ारा लोन के बीच फ़िज़िकल रिलेशंस अब भी कायम थे?' मोटे लेंस का चश्मा पहने एक रिपोर्टर ने पूछा। मैं उसे एक ज़ोर का तमाचा जड़ देना चाहता था। मुझे खुद पर काबू करना पड़ा। यदि मैं पुलिस थाने में किसी जर्नलिस्ट से हाथापाई कर बैठता तो इससे मेरे केस को कोई बहुत मदद नहीं मिल जाती। 'मुझे जाने दीजिए।'

'मिस्टर केशव राजपुरोहित, क्या आपने जारा लोन का मर्डर किया है?' चश्मे वाले ने अगला सवाल पूछा।

"नहीं!" मैंने चीखते हुए कहा। मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था, इसलिए मैं मुड़ा और दौड़ता हुआ पुलिस थाने में चला गया। मैं भूखा रह सकता था, लेकिन मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि मुझे कच्चा चबा लिया जाए। मैं इंस्पेक्टर की हिदायतों की अनदेखी करते हुए सौरभ के पास चला गया, जबकि हमें दूर रहने को कहा गया था। वह एक लकड़ी की मेज़ पर ऊंघ रहा था। मेरे दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था। उसे ना दुख महसूस हो रहा था, ना थकान और ना ही डर। मैं सौरभ की तरह चैन से नहीं सो सकता था। मैंने एक धूलभरी शेल्फ में एक टीवी देखा जिस पर कोई न्यूज़ चैनल चल रहा था। कुछ विज्ञापनों के बाद चैनल पर 'ब्रेकिंग न्यूज़'

फ़्लैश हुई। 'आईआईटी दिल्ली के हॉस्टल में एक कश्मीरी मुस्लिम लड़की का कत्ल ।' आईआईटी गेट के सामने एक रिपोर्टर खड़ा था, उसी सिक्योरिटी चेकपॉइंट के पास में, जहां मैंने अपना

पुराना आईडी कार्ड दिखाया था। मैंने देखा कि गेट के बाहर भी कोई एक दर्जन रिपोर्टर्स खड़े थे। डायरेक्टर ने मीडिया को अंदर आने से मना कर दिया होगा। टीवी पर केवल आईआईटी दिल्ली के मेन गेट के शॉट्स दिखाए जा रहे थे। वॉल्यूम बहुत कम था इसलिए मुझे सुनने के लिए टीवी के बहुत क़रीब जाना पड़ा। रिपोर्टर अपने कानों में

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